Tuesday, September 25, 2018

महसूस कीजिए बच्चों की मासूम हरकतें

हाल ही में एक रिसर्च आई थी। इसकी खबर थी कि शिशु इन दिनों देर से बोलना सीख पा रहे हैं क्योंकि उनके माता-पिता उनसे बात नहीं करते। वे रात-दिन फेसबुक, इंटरनेट और मोबाइल में उलझे रहते हैं। तकनीक ने जहां एक ओर मनुष्य के विकास और उसके आगे बढ़ने में भूमिका निभाई है वहीं वह बहुत बार कठिनाइयां भी पैदा कर रही है।
ब्लू व्हेल के जाल से जब एक चौदह साल के बच्चे को पुलिस ने बचाया था तो उसने भी यही शिकायत की थी कि उसके माता-पिता के पास उसके लिए जरा-सा भी समय नहीं है। दिन भर वे दफ्तर में रहते हैं। घर आते हैं तो अपना कम्प्यूटर या मोबाइल लेकर बैठे रहते हैं। वह कुछ पूछता भी है तो या तो उसे डांटकर चुप करा दिया जाता है या वे जवाब ही नहीं देते। एक तो मध्य वर्ग के वे माता-पिता जो रोजगारशुदा हैं, उन्हें इन दिनों 24×7 के हिसाब से काम करना पड़ता है। दफ्तर का जो काम अधूरा रह गया, वह काम घर में भी चला आता है। ऐसे में अगर शिशु को वे टाइम नहीं दे पा रहे हैं तो इसमें क्या आश्चर्य। नौकरी को बनाए और बचाए रखने के लिए जैसे चौबीस घंटे भी इन दिनों कम पड़ने लगे हैं। ऐसे में बच्चों से बातें कब करें।
लेकिन हम सब जानते हैं कि छोटे से बच्चे से बात करना कितना आनंददायक अनुभव होता है। इसके अलावा जब आप बच्चे से बातें करते हैं, आपके होंठ जिस तरह से हिलते हैं, जिस तरह की ध्वनियां निकलती हैं, बच्चा उनकी ही नकल करता है। जैसे कि तोते को बोलना सिखाने के लिए उसके सामने बार-बार शब्दों को दोहराना पड़ता है, शिशु की स्थिति भी लगभग वैसी ही होती है। उदाहरण के तौर पर अगर आप नवजात शिशु को जीभ दिखाएं तो वह पलटकर जीभ दिखाता है यानी कि वह सब कुछ जानता-समझता है और जैसा देखता-सुनता है वैसी ही नकल करने की कोशिश करता है।
पहले संयुक्त परिवारों में अगर माता–पिता नहीं तो गोद में उठाकर परिवार का कोई भी सदस्य दादा, दादी, चाचा, चाची, बुआ, ताई या कोई और भी बच्चों को गोद में उठाकर बेशुमार बातचीत किया करते थे और बच्चों को बातें सुनने की इतनी आदत पड़ जाती थी कि अगर उनसे बातें न की जाएं तो वे रोते थे। ब्रज प्रदेश में मजाक में कहा जाता था कि देखो बातें न करने के कारण यह कैसा रो रहा है। कितना बतकुट हो गया है। परिवार के सदस्यों की बातचीत सुन-सुनकर बच्चे बहुत जल्दी बोलने लगते थे लेकिन अब एकल परिवारों में जहां बच्चे या तो आयाओं के भरोसे हैं या डे केयर सेंटर के, वहां उनसे बातचीत कौन करे।
अमेरिका में रहने वाली एक लड़की ने एक बार दिलचस्प बात बताई जो ऊपर छपी रिसर्च की बातों को भी साबित करती है। उसके बेटे का जन्म हुआ तो उसके माता-पिता जाने वाले थे। मगर उन्हें वीजा नहीं मिला। इस कारण से बच्चा माता-पिता के साथ परिवार में तो रहता था, मगर दिन भर पालने में पड़ा रहता था। उन दिनों मां नौकरी नहीं करती थी। वह दिनभर काम में लगी रहती और पिता दफ्तर चले जाते। ऐसे में बच्चे को सिवाय खिलौनों के और कोई सहारा नहीं था। इस कारण यह बच्चा बहुत देर से बोलना सीखा। कुछ साल बाद इस बच्चे की बहन का जन्म हुआ। तब तक यह परिवार अमेरिका से स्विट‍्ज़रलैंड में आ बसा था। यहां बच्ची के जन्म के बाद उसके नाना-नानी आए। वे तीन महीने तक साथ रहे। उनके जाने के बाद दादा-दादी आ पहुंचे। वे भी तीन महीने रहे। इस तरह छह महीने तक इस बच्ची को कभी तेल लगाते तो कभी बोतल से दूध पिलाते लगातार वे बातें करते रहते। नहलाते वक्त भी वे बातें जारी रहतीं। बातें तभी रुकतीं जब बच्ची सो जाती। इसका परिणाम यह हुआ कि बच्ची सात-आठ महीने में न केवल बोलने लगी बल्कि खड़ी होने की कोशिश भी करने लगी।
हमारे घर-परिवारों में पुराने जमाने से लोग इस बात को जानते हैं कि बच्चे को अगर बोलना सिखाना है तो उससे बातें करना कितना जरूरी है। अरसे से ये बातें कही भी जा रही हैं कि एकल परिवारों के बच्चे अकेलेपन का शिकार हैं क्योंकि उनसे बातें करने वाला कोई नहीं, उनकी सुनने वाला कोई नहीं। अब शिशु भी समय की इस कमी का शिकार हो रहे हैं।
ऐसे में ये सोचना पड़ता है कि क्या किया जाए। घर चलाना है, महंगाई से निपटना है, भविष्य के लिए कुछ जोड़-जंगोड़ करनी है तो माता-पिता को नौकरी करनी ही होगी। पैसा होगा तभी बच्चे भी पल सकते है। हां यह जरूर हो सकता है कि घर में आकर परिवार के लोग अपने बच्चों को कुछ समय दें क्योंकि सोशल मीडिया या इंटरनेट कहीं जाने वाला नहीं है। वह तो बना ही रहेगा और न केवल बना रहेगा, बढ़ता रहेगा मगर आपके बच्चे का बचपन दोबारा नहीं लौटेगा।
क्षमा शर्मा
अमिताभ बच्चन ने एक बार कहा था कि उन्हें इस बात का बहुत दुख है कि वे अपने बच्चों को बड़ा होते नहीं देख सके। उनकी किलकारियों को महसूस नहीं कर सके क्योंकि जब वे बड़े हो रहे थे तो वे फिल्मों में बहुत व्यस्त थे। इस पछतावे से बचने का यही तरीका है कि बच्चे के बचपन को महसूस किया जाए। उसकी तोतली बोली में आनंद लिया जाए। गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है कि बच्चे की तोतली बातों से माता-पिता बहुत आनंद पाते हैं।
ऐसा भी होता है कि अपना बचपन लौटता दिखता है। यदि बड़े बूढ़े अपने नाती-पोतों की बातें सुनते हैं तो अकसर उनके माता-पिता की याद कर कहते हैं कि अरे यह तो वैसे ही बोलता है जैसे इसका बाप छुटपन में बोलता था या कि इसकी मां भी ऐसे ही बोलती थी। बच्चों की मासूम हरकतों का दुनिया में कोई सानी नहीं। उनकी मीठी बोली कहीं और सुनाई नहीं दे सकती। क्यों न उनकी मीठी बोली को रिकॉर्ड करके रख लिया जाए, जिसे वर्षों बाद सुनकर उनके बचपन का दोबारा सुख लिया जा सके।

Thursday, September 6, 2018

अमरीकी विदेश और रक्षा मंत्री के दौरे से भारत को क्या हासिल होगा?

अमरीकी रक्षामंत्री जेम्स मैटिस और विदेश मंत्री माइक पोम्पियो गुरुवार को भारत दौरे पर पहुंच रहे हैं. वो भारत की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से बात करेंगे.
बीबीसी संवाददाता विकास पांडेय बता रहे हैं कि यह वार्ता दोनों देशों के लिए क्यों अहम है.
इस वार्ता को मीडिया में 2+2 डायलॉग कहा जा रहा है. अमरीका और भारत की यह बातचीत दोनों देशों के बीच हालिया तनाव के बाद हो रही है.
पहले ये मुलाकात अप्रैल में होनी तय हुई थी लेकिन तभी अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने तत्कालीन विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन को पद से हटा दिया.
इसके बाद जुलाई में एक बार फिर यह बातचीत स्थगित हो गई और भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसके पीछे 'नज़रअंदाज' न की जा सकने वाली वजहें बताईं. लेकिन इसके बाद से काफ़ी कुछ बदल चुका है.मरीका ने भारत और रूस के बीच होने वाले रक्षा सौदे को लेकर चेतावनी दी है. इसके अलावा भारत को ईरान से तेल का आयात करने को लेकर भी आगाह किया है. फ़िलहाल अमरीका ने रूस और ईरान दोनों पर ही पाबंदियां लगा रखी हैं.
दूसरी तरफ़, ट्रंप ने जब प्रधानमंत्री मोदी के उच्चारण के लहजे का मज़ाक उड़ाया तो वो भारतीय राजनायिकों को पसंद नहीं आया. और भारतीय राजनयिक ट्रंप के अप्रत्याशित रवैये की वजह से थोड़े चौकन्ने भी रहते हैं.
जॉर्ज बुश और बराक ओबामा के शासनकाल में भी भारत और अमरीका के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ते रहे हैं. हालांकि ट्रंप शासनकाल में दोनों देशों के रिश्तों के बारे में ऐसा कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी.
'कंट्रोल रिस्क्स कंसल्टेंसी' में असोसिएट डायरेक्टर (भारत और दक्षिण एशिया) प्रत्युष राव का मानना है कि भारत को बातचीत में 'सतर्क आशावाद' वाला रवैया अपनाने की ज़रूरत है.
प्रत्युष ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "भारत ने ओबामा और बुश प्रशासन में अमरीका की तरफ़ से कई सुविधाओं का लाभ उठाया है. ख़ास तौर से सिविल न्यूक्लियर डील और ईरान के साथ भारत को तेल के व्यापार की छूट. लेकिन अब भारत के सामने असली चुनौती होगी. चुनौती ये होगी कि वो व्यापारिक नीतियों में लगातार बदलाव लाने वाले ट्रंप प्रशासन के साथ ख़ुद को कैसे समायोजित करता है."
ये भी सच है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अमरीका और भारत के सम्बन्धों को सुधारने के लिए काफ़ी कोशिशें की और वक़्त लगाया है. मोदी ने कई मौकों पर कहा था कि ओबामा उनके दोस्त हैं और उन्हें ओबामा के साथ काम करना पसंद है लेकिन अभी दुनिया के राजनातिक आयाम बदल गए हैं."
अमरीकी प्रशासन ने अपने हालिया फ़ैसलों से दुनिया को ये दिखा दिया है कि वो अप्रत्याशित फ़ैसले ले सकते हैं. फिर चाहे वो उत्तर कोरिया के साथ हाथ मिलाना हो, 2015 के पेरिस जलवायु समझौते से ख़ुद को अलग करना हो या ईरान के साथ परमाणु करार से क़दम पीछे खींचना हो.
प्रत्युष राव कहते हैं कि भारतीय राजनयिक अमरीका से बात करते वक़्त इन सभी चौंकाने वाले फ़ैसलों को ज़हन में रखेंगे.
रक्षा से सम्बन्धित हथियार और उपकरण खरीदने वाला भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है और रूस उसका सबसे बड़ा निर्यातक. सैन्य उपकरण या हथियार, इन सबका बड़ा हिस्सा भारत को रूस से मिलता है.
अमरीका इस समीकरण को बदलना चाहता है. पिछले पांच साल में अमरीका का भारत को निर्यात पांच बार से ज़्यादा मौकों पर बढ़ा है. ये बढ़ोतरी रक्षा उपकरणों और हथियारों के मामले में हुई है. इससे अमरीका के भारत को निर्यात किए जाने वाले रक्षा सौदों में 15 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है.
वहीं दूसरी तरफ़, स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट के आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच सालों में रूस से भारत के निर्यात में 62-79 फ़ीसदी की गिरावट आई है. हालांकि अतीत में झांका जाए तो अमरीका ने भारत के रूस से हथियार ख़रीदने पर ज़्यादा आपत्ति नहीं जताई है.
प्रत्युष राव कहते हैं, "अमरीका हमेशा से ये मानता रहा है कि दक्षिण एशिया क्षेत्र में चीन का मुकाबला करने के लिए भारत को सामरिक रूप से मज़बूत होने की ज़रूरत है. इसके लिए भले ही भारत को रूस से हथियार क्यों न ख़रीदने पड़े." लेकिन ट्रंप प्रशासन का रवैया इस मामले में पिछली अमरीकी सरकारों से अलग है.
अभी हाल ही में भारत को रूस से S-400 एयर डिफ़ेंस मिसाइलें खरीदनी थीं और भारत को उम्मीद थी कि अमरीका इस डील को आगे बढ़ाने की मंजूरी देगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
एक वरिष्ठ अमरीकी अधिकारी ने कहा कि भारत को इस सौदे की छूट नहीं दी जा सकती. इसके साथ ही अमरीका ने भारत के रूस की उन कंपनियों के साथ करार का विरोध किया जिन पर उसने पाबंदियां लगा रखी हैं.
'एशियन एंड पैसिफ़िक सिक्योरिटी अफ़ेयर्स' के असिस्टेंट सेक्रेटरी (डिफ़ेंस) रैंडल स्राइवर ने कहा, "मैं यहां बैठकर आपको नहीं बता सकता कि भारत को छूट मिलेगी या नहीं. ये फ़ैसला अमरीकी राष्ट्रपति का होगा."
वहीं भारतीय राजनायिकों ने इस बात के संकेत दिए हैं कि भारत, रूस के साथ की गई डील से पीछे नहीं हटेगा क्योंकि ये भारत के वायु रक्षा प्रणाली के लिए बहुत अहम है.
इसलिए ये हैरानी वाली बात नहीं है कि गुरुवार को होने वाली बैठक में यह मुद्दा एक अहम एजेंडे के तौर पर शामिल है.
इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफ़ेयर्स में वरिष्ठ विश्लेषक डॉक्टर श्रुति बैनर्जी का मानना है कि दोनों देशों के नेता इसका हल ढूंढने की कोशिश करेंगे.
उन्होंने कहा, "दोनों ही देश इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाएंगे. हालांकि दोनों के पास इसका हल ढूंढने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. अमरीका और भारत के बीच कुछ मुद्दों को लेकर असहमतियां और संशय ज़रूर हैं, लेकिन भरोसे की कमी नहीं."
इस वार्ता से कुछ सकारात्मक नतीजों की उम्मीद की जा रही है.
दोनों देश 'कम्यूनिकेशन्स कंपैटबिलटी एंड सिक्युरिटी अग्रीमंट' पर हस्ताक्षर के लिए बातचीत आगे बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं. अगर इस डील पर बात बन गई तो दोनों देशों के सेनाओं के बीच संवाद और समन्वय बेहतर हो जाएगा.मरीका साफ़ कह चुका है कि वो भारत के ईरान से कच्चा तेल आयात करने के ख़िलाफ़ है. हालांकि भारत के लिए अमरीका की इस मांग को मानना मुश्किल हो सकता है. डॉक्टर बैनर्जी के मुताबिक भारत ईरान से तेल ख़रीदना बंद करना अफ़ोर्ड नहीं कर सकता.
भारत ने ईरान के चाबहार में बंदरगाह बनाने के लिए 50 करोड़ डॉलर से ज़्यादा का निवेश करने का वादा किया है. इस बंदरगाह से भारत के लिए दूसरे एशियाई देशों तक पहुंचना आसान होगा जिससे भारत के व्यापार में इजाफ़ा होगा.
डॉक्टर बैनर्जी कहती हैं, "ईरान भारत का महत्वपूर्ण रणनीतिक सहयोगी है. ईरान से तेल का आयात बंद करना उसे ख़फ़ा कर सकता है. हां, ये हो सकता है कि भारत आयात किए जाने वाले तेल की मात्रा कम कर दे लेकिन ये भी इस बात पर काफ़ी हद तक निर्भर करेगा कि अमरीका भारत के इस फ़ैसले को कैसे देखता है."
अमरीका और भारत अफ़गानिस्तान के साथ अपनी नीतियों को लेकर भी मतभेद रखते हैं, हाल ही में अमरीका के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी का कहना था कि अमरीका तालिबान के साथ सीधे बातचीत करने को तैयार है, वहीं भारत ऐसा करने से हमेशा हिचकता रहा है.
डॉक्टर बैनर्जी कहती हैं, "भारत अफ़गानिस्तान को सबसे ज़्यादा मदद देने वाले देशों में से है इसलिए ये वहां होने वाली शांति प्रक्रिया में एक अहम भागीदार बनना चाहेगा. इसलिए भारत को यह पसंद नहीं आएगा कि अमरीका उन समूहों से सीधी बातचीत करे जिनके पीछे पाकिस्तान का हाथ है.''
जहां तक व्यापार की बात है तो ये इस वार्ता का प्रमुख एजेंडा नहीं होगा. हालांकि कुछ ज़रूरी मुद्दों पर चर्चा हो सकती है.
अमरीका ने इस साल भारत से आयातित स्टील और एल्युमीनियम के उत्पादों पर टैक्स बढ़ा दिया था. इसके जवाब में भारत ने भी अमरीका के कई उत्पादों पर लगने वाला आयात शुल्क बढ़ा दिया था.